वैसे भी जर्मनी के कोच और बड़े टूर्नामेंट में भारत को गोल्ड मिलना कोई नहीं बात नहीं है। इससे पहले जर्मनी के ही गैबी बुलमान की कोचिंग में अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग ओलंपिक में गोल्ड मेडल पर निशाना साधा था। यह व्यक्तिगत स्पर्धा में भारत का यह इकलौता ओलंपिक स्वर्ण है ।

अब दस साल बाद जर्मनी की ही पूर्व ओलंपिक पदक विजेता मुंखबायर दोर्सुरेन के मार्गदर्शन में राही सरनोबत ने एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीता। दोर्सुरेन मंगोलिया की रहने वाली है लेकिन अब जर्मनी में बस गई। साल 2008 बीजिंग ओलंपिक में उन्होंने कांस्य पदक जीता था। राही ने भी अपनी जीत का पूरा श्रेय दोर्सुरेन को दिया। राही ने कहा कि हमारा रिश्ता यह मां बेटी के रिश्ते जैसा है। उनकी बेटी मेरी उम्र की है । हम एक साल से साथ अभ्यास करते हैं।

एशियन गेम्स 2018 में भारत का गोल्ड मेडल पक्का!

पिछले साल हम दोनों ने साथ में काम किया और उसके बाद मैंने फैसला किया कि वह मेरी पर्सनल कोच होंगी। सच कहूं तो वह बहुत महंगी कोच है और मुझे जो मिलता है उसमें मैं उनको वेतन नहीं दे सकती। ओजीक्यू से मिलने वाली मदद भी कम पड़ती है। फिलहाल मैं ग्लास्गो में जो नगद पुरुस्कार मुझे मिले थे, उससे काम चला रही हूं।

राही ने कहा कि निशानेबाजी मेरी लाइफ है। खाली समय में भी मैं निशानेबाजी ही करती हूं। हां मुझे किताबे पढ़ने का भी शौक है और मैंने खेलगांव में चार किताबें रखी है। फिलहाल मैं कन्नड़ लेखक एस एल भाइरप्पा की किताबों का मराठी अनुवाद पढ रही हूं जो मानवीय रिश्तों के बारे में है।

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